एक बार की बात है, अकबर और बीरबल अपने दरबार में बैठे थे। अकबर को हमेशा बीरबल की बुद्धिमानी पर भरोसा था। एक दिन अकबर ने बीरबल से पूछा, “बीरबल, बताओ, क्या तुम जानते हो कि सबसे बड़ा खजाना क्या है?”
बीरबल मुस्कराए और बोले, “जहांपनाह, सबसे बड़ा खजाना वह होता है जो इंसान को सच्चे दिल से संतुष्ट कर दे।”
अकबर ने सोचा, “कैसे साबित कर सकते हैं?” फिर अकबर ने बीरबल को एक चुनौती दी, “अगर तुम ऐसा खजाना ला सको, तो मैं तुम्हें इनाम दूंगा।”
बीरबल मुस्कराए और महल से बाहर निकल गए। उन्होंने कुछ समय बाद एक बड़ी सी बोरी लेकर लौटने का फैसला किया। बोरी में कुछ सामान था, लेकिन उसे किसी को दिखाई नहीं दिया। बीरबल अकबर के सामने गए और बोले, “जहांपनाह, ये वह खजाना है जो मैंने लाया है।”
अकबर ने बोरी को खोला, लेकिन उसमें कुछ भी दिखाई नहीं दिया। अकबर ने चौंकते हुए पूछा, “यह क्या है, बीरबल?”
बीरबल हंसते हुए बोले, “यह खाली बोरी है, और इसमें वह खजाना है जो अगर कोई इंसान सच्चे दिल से संतुष्ट हो, तो उसे कोई और चीज़ की आवश्यकता नहीं होती। संतोष ही सबसे बड़ा खजाना है।”
अकबर को बीरबल की बात समझ में आई और उन्होंने माना कि सच्चे संतोष से बढ़कर कोई खजाना नहीं हो सकता।
यह कहानी अकबर और बीरबल की बुद्धिमानी का एक बेहतरीन उदाहरण है। अकबर, अपने शाही वैभव के बावजूद, सबसे बड़े खज़ाने की तलाश में थे। बीरबल ने एक सरल, पर गहरे अर्थ वाली बात कही – संतोष ही सबसे बड़ा खजाना है। उन्होंने खाली बोरी दिखाकर यह सिद्ध किया कि वास्तविक धन भौतिक वस्तुओं में नहीं, मन की शांति और संतुष्टि में निवास करता है। अकबर ने बीरबल की बुद्धि और उनकी बात के गूढ़ अर्थ को समझा।
यह चित्र अकबर और बीरबल के बीच हुई इस बातचीत को दर्शाता है, जहाँ बीरबल की बुद्धिमानी और अकबर की समझदारी स्पष्ट दिखाई देती है। कहानी हमें सिखाती है कि भौतिक संपदा से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है आंतरिक शांति और संतोष।
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